यूनिफॉर्म सिविल कोड पर जरूरी है गंभीरता...
हमारे देश का यह बहुत बड़ा दुर्भाग्य है कि यहां हर बात के मायने राजनीति के चश्मे से निकाले जाते हैं। इसका परिणाम होता है कि कई बार समाज सुधार के काम भी ठंडे बस्ते में डाल दिए जाते हैं। अब सोचिए कि जिस बाबा साहब भीमराव अंबेडकर को हम कानून का सबसे बड़ा जानकार मानते, जिन्हें भारतीय संविधान के शिल्पकार मानते हैं उनका समान नागरिक संहिता को लेकर विचार था कि 'रूढ़िवादी समाज में धर्म भले ही जीवन के हर पहलू को संचालित करता हो लेकिन आधुनिक लोकतंत्र में धार्मिक क्षेत्राधिकार को घटाएं बिना असमानता और भेदभाव को दूर नहीं किया जा सकता है इसलिए देश का दायित्व होना चाहिए कि वो समान नागरिक संहिता यानि यूनिफॉर्म सिविल कोड को अपनाएं'।
यहां हम अतीत की बात करें उसके पहले भारतीय संविधान की बात करना बेहद लाजमी लगता है। बता दें कि संविधान के नीति निर्देशक तत्व के अधीन अनुच्छेद 44 समान नागरिक संहिता की दास्तां और प्रधानता को बल देने के लिए काफी है। इस अनुच्छेद के तहत राज्यों को उचित समय पर सभी धर्मों के लिए समान नागरिक संहिता बनाने की खुली वकालत जगजाहिर है। जब संविधान में साफ तौर पर इसका जिक्र किया गया है तो फिर इसे लागू करने में क्या अड़चन है।
वही हम अतीत से लेकर वर्तमान तक जब देखें फिर कई ऐसी बातें निकल कर सामने आएंगी जो समान नागरिक संहिता की जरूरत पर बल देती है । इतना ही नहीं अलग-अलग धर्मों के लिए अलग-अलग कानून से न्यायपालिका पर बोझ पड़ता है। समान नागरिक संहिता लागू होने से इस परेशानी से निजात मिलेगी और अदालतों में वर्षों से लंबित पड़े मामलों के फैसले जल्द होंगे।
अगर देश में शादी, तलाक, गोद लेना और जायदाद के बंटवारे में सबके लिए एक जैसा कानून होगा फिर चाहे वह किसी भी धर्म का व्यक्ति क्यों ना हो, उनके बीच समानता का भाव जागृत होगा। इन सबके अलावा समान नागरिक संहिता का अवधारणा यह है कि इससे सभी के लिए कानून में एक समानता से राष्ट्रीय एकता मजबूत होंगी। देश में हर भारतीय पर एक समान कानून लागू होने से देश की राजनीति में भी सुधार की उम्मीद है।
--- राजेश चौधरी
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